ई-सिगरेट पीने वाले कहीं आप तो नहीं, या आधुनिक हुक्के के … यदि हाँ, तो हो जाएं सावधान….
कैंसर समेत कई रोगों के हो सकते हैं शिकार
आधुनिकता के पीछे दौड़ती आज की युवा पीढ़ी ने स्मोकिंग का नया विकल्प ई-सिगरेट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। आमतौर पर सिगरेट की लत छुड़ाने के लिए बाजार में आई ई-सिगरेट युवाओं के बीच अब काफी पसंद की जा रही है, लेकिन यह भी धूम्रपान की तरह खतरनाक है।

ई सिगरेट यानि इलेक्ट्रॉनिक इन्हेलर है, जिसमें निकोटीन और अन्य केमिकल मिश्रित लिक्विड भरा जाता है। यूँ धूम्रपान का ये नया अवतार ई-सिगरेट भी सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है। एक रिसर्च के अनुसार, ई-सिगरेट में भी अस्थमा समेत ऐसी और बीमारियों के कारक हो सकते हैं, जिनसे फेफड़े को खतरा होता है। एक अध्ययन में अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ई-सिगरेटके 75 लोकप्रिय उत्पादों को शामिल किया। इनमें एक बार प्रयोग होने वाले और रीफिल किए जा सकने वाले उत्पाद शामिल थे। अध्ययन

में 27 फीसद उत्पादों में एंडोटॉक्सिन पाया गया। यह एक माइक्रोबियल एजेंट है, जो ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया पर पाया जाता है । वहीं 81 फीसदी उत्पादों में ग्लूकन के कण पाए गए। अब ग्लूकन को भी समझ लेते हैं, ग्लूकन ज्यादातर
फंगस की कोशिकाओं की दीवारों पर मिलता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ई-सिगरेट उत्पादों में इन तत्वों की उपस्थिति यह बताने की लिए पर्याप्त है, कि इनके कारण भी अस्थमा और फेफड़े की अन्य बीमारियां हो सकती हैं
इसमें शामिल केमिकल जानलेवा हैं, इसके दुष्प्रभावों से लंग्स कैंसर और पॉपकॉन लंग्स का इसके इस्तेमाल करने वालों में खतरा तेजी से बढ़ रहा है। ई-सिगरेट के दुष्प्रभाव पर जीएसवीएम के रेस्पेरेटरी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. सुधीर चौधरी अध्ययन कर रहे हैं। उनके मुताबिक ई-सिगरेट युवक, युवतियां और गर्भवती भी इस्तेमाल कर रही हैं। इसका उत्पादन करने वाली कंपनी अपने बिजनेस लाभ के लिए इसे हानिकारक नहीं बताते हैं जबकि यह सिगरेट के बराबर ही हानिकारक है।
ई-सिगरेट कैसे काम करती है :
इन्हेलर बैट्री की ऊर्जा से इस लिक्विड को भाप में बदल देता है जिससे पीने वाले को सिगरेट पीने जैसा एहसास होता है। लेकिन ई-सिगरेट में जिस लिक्विड को भरा जाता है, उसमें ज्यादातर निकोटिन होता है और कई बार उससे भी ज्यादा खतरनाक केमिकल होते हैं। इसलिए ई-सिगरेट को सेहत के लिहाज से बिल्कुल सुरक्षित नहीं माना जा सकता है।
यूँ ई-सिगरेट का निर्माण वर्ष 2003 में चीन में हुआ था। यह बैटरी से चलने वाला निकोटिन डिलीवरी का यंत्र है।
इसमें द्रव्य पदार्थ, जिसे भाप कहते हैं, को गर्म करने के बाद मुंह से खींचा जाता है। वैसे इसे यह सोचकर बनाया गया था, कि बिना
टॉर या कार्बन के फेफड़े तक कम मात्रा में निकोटिन जाएगा। अपने बिजनेस फायदे के लिए इसे बनाने वालों ने ऐसे तरीके अपनाये, जिससे अधिक मात्रा में निकोटिन फेफड़े में जाने लगा। ये लिक्विड निकोटिन होता है। निकोटिन नशीला पदार्थ है इसलिए पीने वाले को इसकी लत लग जाती है। थोड़े दिन के ही
इसे इस्तेमाल करने के बाद अगर पीने वाला इसे पीना बंद कर दे, तो उन्हें बेचैनी और उलझन की समस्या होने लगती है। निकोटिन दिल और सांस के मरीजों के लिए बिल्कुल सुरक्षित नहीं माना जा सकता है। ई-सिगरेट के वेपर को गर्म करने के लिए क्वाइल का इस्तेमाल होता है। क्वाइल में निकोटिन, फार्मालडिहाइड, फेनाले, टिन, निकिल, कॉपर, लेड, क्रोमियम, आर्सेनिक एवं डाई एसेटाइल मेटल हैं।
इसके सेवन करने वालो के फेफड़ों में पॉपकॉन जैसा उभर जाने के कारण इसे पॉपकॉन लंग्स कहते हैं। और बाद में कैंसर का शिकार हो जाते हैं।
कई लोगों में ये धारणा है की इसमें तम्बाकू नहीं होता, लेकिन ये उनका भ्रम है, इसमें जो लिक्विड होता है, उसमें केमिकल मिश्रित निकोटिन होता है। और समान्य सिगरेट के तम्बाकू में भी निकोटिन होता हे।
आज लगभग बड़े शहरों में ई-सिगरेट एवं हुक्का बार का चलन तेजी से बढ़ा है। हुक्का बार में फ्लेवर्ड ई-लिक्विड होता है जबकि ई-सिगरेट में केमिकल वेपर के रूप में होता है। दोनों में हानिकारक डाई एसिटाइल केमिकल (बटर -जैसा जो पॉपकॉन में मिलाते थे, अब प्रतिबंधित) होता है। इसके सेवन से फेफड़े में पॉपकॉन जैसा उभरने पर पॉपकॉन लंग्स कहते हैं। इस बीमारी को ब्रांक्योलाइटिस आब्लिट्रेंन कहा जाता है। इसमें फेफड़ों की छोटी श्वांस नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं, जो आगे चलकर आइएलडी में परिवर्तित हो जाती है। इसकी चपेट में आकर युवा एवं महिलाएं तेजी से फेफड़े की बीमारी का शिकार हो रहे हैं। याद रहे किसी भी ब्यसन का परिणाम हमेशा खतरनाक होता है। और यदि आप एक बार इसकी गिरफ्त में आ गए, तो इससे बाहर निकलने में बहुत मुश्किल हो सकती है।
आज अपने भविष्य को सुरक्षित और स्वस्थ बनाने के लिए इसकी गिरफ्त में आ चुके युवा पीढ़ी को चहिये कि, इससे जितनी जल्दी हो सके बाहर निकलें।